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विवेक ओबेरॉय: फिल्म इंडस्ट्री की सच्चाई और उनकी संघर्षपूर्ण यात्रा

Vivek Oberoi: The truth of the film industry and his struggling journey : बॉलीवुड अभिनेता विवेक ओबेरॉय का करियर सफलता और असफलता के कई पड़ावों से गुजरा है। एक वक्त ऐसा था जब उन्होंने हिट फिल्में देकर अपनी अभिनय क्षमता को साबित किया, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने बेरोजगारी का सामना किया। हाल ही में उन्होंने अपने करियर, इंडस्ट्री की असुरक्षाओं, और उन कठिन समयों पर बात की जब वे बिना किसी प्रोजेक्ट के घर बैठे थे। विवेक का मानना है कि फिल्म इंडस्ट्री न केवल ग्लैमर और सफलता का मंच है, बल्कि यह एक ऐसी जगह भी है, जहां प्रतिभा और मेहनत के बावजूद अनिश्चितता और असुरक्षा बनी रहती है।


फिल्म इंडस्ट्री: एक असुरक्षित जगह

विवेक ओबेरॉय ने हाल ही में दिए गए एक इंटरव्यू में फिल्म इंडस्ट्री की असुरक्षाओं पर खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि यहां पर केवल अच्छा अभिनय या पुरस्कार जीतना ही काफी नहीं है। उन्होंने इंडस्ट्री को “असुरक्षित जगह” बताया, जहां कई बार सफलता भी आपको काम की गारंटी नहीं देती। विवेक ने कहा,

“मैंने 22 साल में 67 प्रोजेक्ट किए हैं, लेकिन इंडस्ट्री में असुरक्षा हर कदम पर महसूस होती है। भले ही आप शानदार अभिनय करें या कई पुरस्कार जीतें, लेकिन व्यक्तिगत कारणों या बाहरी ताकतों की वजह से बेरोजगारी का सामना करना पड़ सकता है।”


हिट फिल्म के बाद भी बेरोजगारी का दौर

विवेक ने बताया कि साल 2007 में रिलीज हुई उनकी फिल्म ‘शूटआउट एट लोखंडवाला’ को दर्शकों और आलोचकों से भरपूर सराहना मिली थी। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर शानदार प्रदर्शन किया था और उनका गाना ‘गणपत’ काफी पॉपुलर हुआ। इस फिल्म के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी मिले। लेकिन, इन सफलताओं के बावजूद उनका करियर आगे नहीं बढ़ पाया।

उन्होंने बताया,

“शूटआउट एट लोखंडवाला की सफलता के बाद मुझे उम्मीद थी कि अब मेरे पास ढेरों ऑफर्स आएंगे। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। करीब 15 महीने तक मैं घर पर बेरोजगार बैठा रहा।”

यह दौर विवेक के लिए बेहद कठिन था। उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया था और उन्हें यह एहसास हुआ कि बॉलीवुड में सफलता भी स्थायी नहीं होती।


तनाव और दबाव का सामना

विवेक ने इस बात पर भी चर्चा की कि फिल्म इंडस्ट्री में काम का दबाव और असुरक्षा किस तरह एक व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर डाल सकती है। उन्होंने कहा कि बेरोजगारी के इस दौर ने उनके मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित किया।

“इस दौरान मुझे बेहद तनाव महसूस होता था। लगातार काम न मिलने की वजह से मुझे ऐसा लगता था कि जैसे मेरी क्षमता पर सवाल उठाए जा रहे हों।”


आर्थिक स्वतंत्रता के लिए उठाए गए कदम

करीब डेढ़ साल तक बिना किसी काम के घर बैठने के बाद विवेक ने अपने जीवन में बड़ा बदलाव करने का फैसला किया। उन्होंने महसूस किया कि केवल फिल्म इंडस्ट्री पर निर्भर रहना एक बड़ी गलती हो सकती है। 2009 में उन्होंने आर्थिक स्वतंत्रता की ओर कदम बढ़ाया।

विवेक ने बताया,

“मैंने तय किया कि मैं बाहरी ताकतों को अपने भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं करने दूंगा। मैंने व्यवसाय की ओर रुख किया और उसे आजीविका का जरिया बनाया। सिनेमा हमेशा मेरा जुनून रहेगा, लेकिन मैंने व्यवसाय को प्लान बी के रूप में देखा।”

विवेक के मुताबिक, व्यवसाय में प्रवेश ने न केवल उन्हें आर्थिक रूप से स्थिर बनाया, बल्कि फिल्म इंडस्ट्री की असुरक्षाओं से भी राहत दिलाई।


फिल्म इंडस्ट्री की असलियत

विवेक का मानना है कि फिल्म इंडस्ट्री में कई बार आपकी मेहनत और प्रतिभा के बावजूद आपको सही मौके नहीं मिलते। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यहां सफलता का निर्धारण कई बार आपकी काबिलियत से ज्यादा बाहरी कारकों पर निर्भर करता है।

उन्होंने कहा,

“फिल्म इंडस्ट्री में टिके रहने के लिए केवल अच्छा अभिनय ही काफी नहीं है। यहां राजनीति, बाहरी दबाव, और व्यक्तिगत झगड़े भी आपके करियर को प्रभावित करते हैं।”


विवेक का व्यवसाय में कदम रखना

विवेक ओबेरॉय ने व्यवसाय में कदम रखकर अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाया। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में निवेश किया और अपनी स्वतंत्रता सुनिश्चित की। व्यवसाय के क्षेत्र में मिली सफलता ने उन्हें मानसिक और भावनात्मक तौर पर भी मजबूत बनाया।

उनके मुताबिक,

“अगर आप केवल फिल्म इंडस्ट्री पर निर्भर रहेंगे, तो इसकी असुरक्षाएं आपको परेशान कर सकती हैं। व्यवसाय में कदम रखने से मुझे यह आजादी मिली कि अब मैं अपने करियर को लेकर ज्यादा जोखिम उठा सकता हूं।”


आने वाले प्रोजेक्ट्स और नई शुरुआत

लंबे समय तक फिल्मों से दूर रहने के बाद विवेक ओबेरॉय ने हाल ही में कुछ नए प्रोजेक्ट्स साइन किए हैं। उन्होंने बताया कि वह अब चुनिंदा और प्रभावशाली भूमिकाएं निभाना चाहते हैं। उनके आने वाले प्रोजेक्ट्स में ‘मस्ती 4’ और अन्य तीन बड़े प्रोजेक्ट शामिल हैं।

विवेक ने कहा,

“अब मैं केवल वही प्रोजेक्ट्स करता हूं जो मुझे रोमांचित करते हैं। मैंने सीखा है कि जिंदगी में संतुलन बनाना कितना जरूरी है।”


सीख और प्रेरणा

विवेक ओबेरॉय की यह कहानी फिल्म इंडस्ट्री के वास्तविक पक्ष को उजागर करती है। यह दिखाती है कि इस चमक-धमक वाली दुनिया में कितनी असुरक्षा और अनिश्चितता हो सकती है। उनकी कहानी से यह भी सीखने को मिलता है कि जीवन में कठिन समय का सामना कैसे करना चाहिए और अपने जुनून के साथ-साथ अपने भविष्य की स्थिरता के लिए वैकल्पिक योजनाएं बनाना कितना जरूरी है।


निष्कर्ष

विवेक ओबेरॉय का करियर संघर्ष और दृढ़ता का प्रतीक है। उनके अनुभव हमें सिखाते हैं कि केवल मेहनत और प्रतिभा के भरोसे जीवन की हर चुनौती का सामना नहीं किया जा सकता। अपने जीवन में संतुलन और आर्थिक स्थिरता बनाए रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

फिल्म इंडस्ट्री की असुरक्षाओं और चुनौतियों के बावजूद, विवेक ने अपने जुनून को बनाए रखा और अपने करियर को नई दिशा देने में सफल रहे। उनकी यह कहानी न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह भी सिखाती है कि जीवन के हर पड़ाव पर आत्मनिर्भरता और दृढ़ निश्चय का होना कितना जरूरी है।

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