Triple Talaq Law: Central Government’s affidavit in the Supreme Court, a big step towards providing justice and rights to women.

Triple Talaq

Triple Talaq पर केंद्र सरकार का रुख

केरल के जमीयतुल उलेमा ने 2019 के मुस्लिम महिला अधिनियम को असंवैधानिक करार देते हुए एक याचिका दायर की थी। इस याचिका में दलील दी गई थी कि जब सुप्रीम कोर्ट ने Triple talaq को पहले ही अमान्य घोषित कर दिया है, तो इसे अपराध की श्रेणी में रखना अनुचित है।

केंद्र सरकार ने इस याचिका के जवाब में सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण हलफनामा दायर किया। इस हलफनामे में कहा गया है कि तीन तलाक कानून मुस्लिम महिलाओं को न्याय और उनके अधिकारों का संरक्षण प्रदान कर रहा है। सरकार ने कहा कि यह कानून विवाहित मुस्लिम महिलाओं को उनके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा और समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

Triple Talaq : मुस्लिम महिलाओं के लिए न्याय का कानून

Triple Talaq की प्रथा को सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में अमान्य करार दिया था। इसके बावजूद, कुछ मुस्लिम समुदायों में यह प्रथा अब भी जारी है। केंद्र सरकार ने इस हलफनामे में जोर देकर कहा कि तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के लिए घातक साबित हो सकता है और उनके जीवन को दयनीय बना सकता है। इस प्रथा के कारण मुस्लिम महिलाएं न्याय पाने में असमर्थ हो जाती हैं और उनके पास पुलिस के पास जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाता है।

सरकार ने कहा कि Triple Talaq कानून में दंडात्मक प्रावधानों की जरूरत है ताकि इस प्रथा को पूरी तरह से समाप्त किया जा सके।

2019 का मुस्लिम महिला अधिनियम: महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा

सरकार ने तर्क दिया कि 2019 का मुस्लिम महिला अधिनियम विवाहित मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने और उनके संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा में अहम भूमिका निभा रहा है। यह अधिनियम महिलाओं के गैर-भेदभाव और सशक्तीकरण के मौलिक अधिकारों को संरक्षित करने में सहायक है।

सरकार ने हलफनामे में यह भी उल्लेख किया कि इस कानून के तहत विवाहित मुस्लिम महिलाओं की रक्षा के लिए कड़े प्रावधान किए गए हैं। सरकार का मानना है कि यह कानून मुस्लिम महिलाओं के जीवन को बेहतर बनाने और उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

निष्कर्ष

केंद्र सरकार का यह हलफनामा Triple Talaq कानून के महत्व और मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इस कानून का उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाना और उनके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना है। केंद्र सरकार का मानना है कि यह कानून महिलाओं के सशक्तीकरण और गैर-भेदभाव की दिशा में एक बड़ा कदम है।

 

 
 

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