पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक बार फिर से तूफान खड़ा हो गया है। इस बार वजह बनी है राज्य में 26,000 शिक्षकों की भर्ती में कथित घोटाले का मामला। विभिन्न छात्र संगठनों ने इस घोटाले के खिलाफ सड़कों पर उतरकर ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया। ये प्रदर्शन न केवल कोलकाता बल्कि राज्य के कई जिलों में देखने को मिला, जिसमें छात्रों ने सरकार की नीतियों और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े किए।
घोटाले का आरोप और पृष्ठभूमि
यह मामला तब सामने आया जब पश्चिम बंगाल स्कूल सर्विस कमिशन (WBSSC) द्वारा शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में भारी अनियमितताओं की बात सामने आने लगी। आरोप है कि लगभग 26,000 शिक्षकों की नियुक्तियों में पारदर्शिता नहीं बरती गई और योग्य उम्मीदवारों को दरकिनार कर, रिश्वत लेकर अयोग्य उम्मीदवारों को नौकरियां दी गईं।
कई उम्मीदवारों ने दावा किया कि उन्होंने लिखित परीक्षा पास की, इंटरव्यू क्लियर किया, लेकिन इसके बावजूद उन्हें नियुक्ति पत्र नहीं मिला। वहीं, कई ऐसे नाम सामने आए जिन्हें कम नंबर मिलने के बावजूद नौकरी मिल गई। ये मामला धीरे-धीरे इतना बड़ा बन गया कि इसकी जांच की मांग को लेकर छात्र संगठनों और बेरोजगार युवाओं ने आंदोलन शुरू कर दिया।
छात्र संगठनों का विरोध प्रदर्शन
इस कथित घोटाले के खिलाफ वामपंथी छात्र संगठनों, जैसे SFI (स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया), AISF (ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन) और DYFI (डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया) ने एकजुट होकर कोलकाता के मेयो रोड, कॉलेज स्ट्रीट और विधान सभा भवन के सामने विशाल प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी हाथों में तख्तियां लेकर “शिक्षा में भ्रष्टाचार बंद करो”, “नौकरियों में पारदर्शिता लाओ” जैसे नारे लगा रहे थे।
इस दौरान कई छात्र नेता ममता सरकार पर गंभीर आरोप लगाते दिखे। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि एक सुनियोजित भ्रष्टाचार का उदाहरण है जिसमें सरकार के उच्च अधिकारी भी शामिल हो सकते हैं।
पुलिस और प्रशासन की प्रतिक्रिया
प्रदर्शन जैसे-जैसे उग्र होता गया, पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। कोलकाता पुलिस ने कई प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया और कुछ स्थानों पर हल्का बल प्रयोग भी किया गया, जिससे माहौल और गरम हो गया। सोशल मीडिया पर भी इन घटनाओं के वीडियो वायरल होने लगे, जिनमें देखा गया कि छात्रों को खींचकर पुलिस वैन में डाला जा रहा है।
प्रशासन की ओर से बताया गया कि प्रदर्शनकारी बिना अनुमति के सड़कों पर उतरे थे और ट्रैफिक बाधित कर रहे थे, इसलिए कार्रवाई करनी पड़ी। लेकिन छात्रों ने आरोप लगाया कि यह उनकी आवाज को दबाने का प्रयास है और वे इससे डरने वाले नहीं हैं।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
इस मुद्दे ने राज्य की राजनीति में भी हलचल मचा दी है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), कांग्रेस और वाम दलों ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया है। बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी ने इस घोटाले को “टेट स्कैम पार्ट-2” कहकर संबोधित किया और कहा कि यह सरकार भ्रष्टाचार की प्रतीक बन गई है। उन्होंने मुख्यमंत्री से इस्तीफे की मांग की।
वहीं, कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने इस मामले की CBI जांच की मांग करते हुए कहा कि ममता सरकार शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र को भी भ्रष्टाचार से अछूता नहीं रहने दे रही है।
सरकार का बचाव और तर्क
दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने इन आरोपों को राजनीतिक साजिश करार दिया है। पार्टी प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा कि कुछ विपक्षी दल और छात्र संगठन मिलकर सरकार को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि सरकार ने पहले ही WBSSC से स्पष्टीकरण मांगा है और जो भी दोषी होगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उनकी सरकार किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करेगी। उन्होंने भरोसा दिलाया कि अगर किसी स्तर पर गलती हुई है, तो उसे सुधारा जाएगा।
प्रभावित अभ्यर्थियों की आपबीती
इस घोटाले का सबसे बड़ा असर उन हजारों अभ्यर्थियों पर पड़ा है जिन्होंने वर्षों मेहनत करके परीक्षा पास की थी, लेकिन फिर भी उन्हें नौकरी नहीं मिली। एक अभ्यर्थी ने मीडिया से बातचीत में बताया, “मैंने 2018 में परीक्षा दी थी। मेरिट लिस्ट में मेरा नाम था लेकिन आज तक नियुक्ति पत्र नहीं मिला। अब सुनने को मिल रहा है कि पैसे लेकर दूसरों को नियुक्ति दे दी गई। यह हमारे साथ धोखा है।”
कई अभ्यर्थी मानसिक तनाव में आ गए हैं, और कुछ तो कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए कोर्ट का भी रुख कर चुके हैं। कलकत्ता हाईकोर्ट में इस मामले से जुड़ी कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं, जिनमें निष्पक्ष जांच की मांग की गई है।
समाज में बढ़ती चिंता
यह पूरा मामला न केवल एक प्रशासनिक विफलता को उजागर करता है, बल्कि समाज में युवाओं के बीच बढ़ती हताशा और अविश्वास को भी दर्शाता है। जब योग्य अभ्यर्थी को उसकी योग्यता के बावजूद नौकरी नहीं मिलती और अयोग्य उम्मीदवार सिफारिश या पैसे के बल पर आगे निकल जाते हैं, तो यह पूरे शिक्षा तंत्र पर सवाल खड़ा करता है।
अभिभावकों, शिक्षकों और सामाजिक संगठनों में भी इस घोटाले को लेकर गहरी चिंता है। उनका मानना है कि जब शिक्षक जैसे पदों पर भी घोटाले होंगे, तो भावी पीढ़ी का क्या भविष्य होगा?
आगे की राह
अब सभी की निगाहें इस बात पर हैं कि क्या ममता सरकार इस मामले की निष्पक्ष जांच करवा पाएगी? क्या दोषियों पर कार्रवाई होगी? और सबसे जरूरी, क्या योग्य उम्मीदवारों को उनका हक मिलेगा?
फिलहाल छात्र संगठनों ने आंदोलन को और तेज करने की चेतावनी दी है। उन्होंने ऐलान किया है कि जब तक सभी आरोपों की जांच नहीं होती और न्याय नहीं मिलता, तब तक उनका विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा।