Politics on Sardar Patel: ‘Why did you forget for 41 years?’—Ravi Shankar Prasad’s scathing attack on Congress, also took the name of Indira Gandhi : भारतीय राजनीति में इतिहास और विरासत को लेकर बहसें कोई नई बात नहीं हैं। लेकिन जब बात आती है सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे महान नेता की, तो राजनीतिक बयानबाज़ी और भी तीखी हो जाती है। हाल ही में, भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस पार्टी पर एक बार फिर करारा हमला किया है। उन्होंने कांग्रेस से सवाल किया कि अगर पार्टी को सरदार पटेल से इतना प्रेम था, तो आखिर 41 वर्षों तक उनकी उपेक्षा क्यों की गई?
रविशंकर प्रसाद का यह बयान सिर्फ एक राजनीतिक तंज नहीं, बल्कि इतिहास की पुनर्व्याख्या और राजनीतिक धारणा गढ़ने की एक रणनीति भी मानी जा रही है। आइए, विस्तार से समझते हैं कि उन्होंने इंदिरा गांधी का नाम क्यों लिया, कांग्रेस पर किन बातों को लेकर निशाना साधा, और इस पूरे विवाद का राजनीतिक और वैचारिक महत्व क्या है।
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सरदार पटेल की विरासत पर सियासत क्यों?
सरदार वल्लभभाई पटेल को भारत के लौहपुरुष के रूप में जाना जाता है। स्वतंत्र भारत के पहले गृह मंत्री और उप प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने 562 रियासतों का एकीकरण कर देश को एकजुट किया। लेकिन उनकी विरासत को लेकर राजनीति वर्षों से होती आ रही है।
भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस ने नेहरू को महिमामंडित किया जबकि पटेल को हाशिए पर रखा। वहीं कांग्रेस का कहना है कि उसने हमेशा सरदार पटेल का सम्मान किया है।
रविशंकर प्रसाद का तीखा बयान
रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा:
“अगर कांग्रेस को वाकई सरदार पटेल से इतना प्रेम होता, तो 41 वर्षों तक उनकी अनदेखी क्यों की गई? क्यों उनके नाम पर कोई राष्ट्रीय स्मारक नहीं बना?”
उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस आज जिस तरह सरदार पटेल की तस्वीरें लगाकर राजनीति कर रही है, वह पाखंड से कम नहीं है।
इंदिरा गांधी का जिक्र क्यों?
रविशंकर प्रसाद ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा:
“जब इंदिरा गांधी की सरकार थी, तब भी सरदार पटेल को वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे।”
उन्होंने यह भी पूछा कि इंदिरा गांधी के शासनकाल में पटेल की जयंती पर कोई विशेष आयोजन क्यों नहीं हुआ, जबकि उसी दौर में नेहरू की छवि को विशेष रूप से गढ़ा गया।
यह जिक्र इसलिए अहम है क्योंकि इंदिरा गांधी की छवि कांग्रेस विचारधारा की पहचान बन चुकी है, और भाजपा जब भी कांग्रेस की आलोचना करती है, तो इंदिरा गांधी का उल्लेख एक प्रतीकात्मक संकेत बन जाता है।
कांग्रेस की सफाई और पलटवार
कांग्रेस ने रविशंकर प्रसाद के बयानों पर तीखा पलटवार किया है। पार्टी प्रवक्ता ने कहा:
“भाजपा अब इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश कर रही है। सरदार पटेल कांग्रेस के ही नेता थे और हमने हमेशा उनका सम्मान किया है। भाजपा सिर्फ चुनावी फायदे के लिए उनकी विरासत का इस्तेमाल कर रही है।”
कांग्रेस ने यह भी बताया कि सरदार पटेल की मृत्यु के तुरंत बाद उनकी समाधि बनाई गई थी, और समय-समय पर उनकी जयंती पर कार्यक्रम भी आयोजित होते रहे हैं।
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी और भाजपा की पहल
भाजपा ने जब गुजरात में सरदार पटेल की 182 मीटर ऊँची प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का उद्घाटन किया, तो इसे राष्ट्रीय गौरव और इतिहास को पुनः स्थापित करने का प्रयास बताया गया। यह पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में हुई, और इसे भाजपा ने अपने वैचारिक एजेंडे से जोड़ा।
रविशंकर प्रसाद ने इसे उदाहरण बनाकर कहा:
“भाजपा ने सरदार पटेल को वह सम्मान दिया, जो कांग्रेस 41 सालों में नहीं दे सकी।”
राजनीतिक रणनीति: सरदार पटेल बनाम नेहरू विमर्श
भाजपा की रणनीति का अहम हिस्सा है सरदार पटेल को नेहरू के समकक्ष या उनसे बड़ा दिखाना, ताकि कांग्रेस की वैचारिक नींव को चुनौती दी जा सके। इससे भाजपा एक ओर तो राष्ट्रीयतावादी विमर्श को मज़बूत करती है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस को नेहरू परिवार तक सीमित पार्टी साबित करने की कोशिश करती है।
चुनावों से पहले विरासत की राजनीति तेज़
यह बयान ऐसे समय आया है जब कई राज्यों में विधानसभा चुनाव और अगले साल लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में यह साफ़ है कि राजनीतिक दल इतिहास और राष्ट्रनायकों के नाम पर जनता की भावनाओं को साधने की कोशिश कर रहे हैं।
सरदार पटेल की लोकप्रियता और उनकी छवि एक निष्पक्ष, सख्त और देशभक्त नेता के रूप में भाजपा के लिए एक आदर्श अवसर है कांग्रेस पर हमला बोलने का।
निष्कर्ष: क्या इतिहास पर कब्ज़ा राजनीति का नया ट्रेंड है?
रविशंकर प्रसाद का बयान सिर्फ कांग्रेस पर हमला नहीं, बल्कि यह राजनीतिक विमर्श को इतिहास की ओर मोड़ने की कोशिश भी है। यह ट्रेंड अब आम होता जा रहा है, जहाँ हर पार्टी अपनी वैचारिक स्थिति को मजबूत करने के लिए इतिहास की पुनर्व्याख्या कर रही है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले दिनों में यह विरासत की राजनीति और भी आक्रामक रूप ले सकती है, और नेताओं की छवि को लेकर जनता के बीच भ्रम और बहस का वातावरण बन सकता है।