Controversy over church scene in the film ‘Jaat’: Case filed against Sunny Deol and Randeep Hooda, accused of hurting religious sentiments : भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में एक बार फिर एक नया विवाद चर्चा का केंद्र बन गया है। इस बार मामला जुड़ा है फिल्म ‘जाट’ से, जिसमें अभिनेता सनी देओल और रणदीप हुड्डा प्रमुख भूमिकाओं में नज़र आ रहे हैं। फिल्म के एक विशेष दृश्य — जो कि एक चर्च में फिल्माया गया है — को लेकर कुछ धार्मिक संगठनों और नागरिकों ने कड़ा ऐतराज़ जताया है। आरोप है कि इस सीन से ईसाई समुदाय की धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं।
इस विवाद ने न केवल सोशल मीडिया पर चर्चा को जन्म दिया है, बल्कि कानूनी मोड़ भी ले लिया है। अब इस मामले में सनी देओल और रणदीप हुड्डा सहित फिल्म के निर्माताओं पर केस दर्ज किया गया है। आइए, जानते हैं इस पूरे प्रकरण को विस्तार से।
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क्या है पूरा मामला?
फिल्म ‘जाट’ का एक ट्रेलर या प्रोमो रिलीज़ हुआ, जिसमें एक सीन में चर्च की पृष्ठभूमि में कुछ संवाद और गतिविधियाँ दिखाई गईं। आरोप यह है कि यह दृश्य ईसाई समुदाय के पवित्र स्थलों और धार्मिक भावनाओं को मज़ाक का विषय बनाता है। कुछ संगठनों और धार्मिक नेताओं का कहना है कि इस दृश्य में चर्च के अंदर अनुचित हरकतें दिखाई गई हैं, जो धर्म विशेष के प्रति अपमानजनक हैं।
इस सीन को लेकर सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं तेज़ी से सामने आने लगीं और जल्द ही यह मामला कानूनी दायरे में चला गया।
किन धाराओं में केस दर्ज हुआ है?
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, फिल्म के कलाकारों और निर्माताओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की निम्नलिखित धाराओं के अंतर्गत केस दर्ज किया गया है:
- धारा 295A: किसी धर्म या धार्मिक विश्वास का जानबूझकर अपमान करना, जिससे लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हों
- धारा 298: ऐसे शब्द कहना या इशारा करना, जिससे किसी की धार्मिक भावना को चोट पहुँचे
- धारा 34: आपराधिक कार्य में साझा सहभागिता
इसके अतिरिक्त, कुछ संगठनों ने सेंसर बोर्ड से भी मांग की है कि फिल्म के रिलीज़ से पहले आपत्तिजनक दृश्यों को हटाया जाए।
सनी देओल और रणदीप हुड्डा की भूमिका
सनी देओल और रणदीप हुड्डा दोनों फिल्म में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। इन पर सीधे तौर पर यह आरोप है कि वे उस दृश्य में शामिल हैं, जिससे विवाद खड़ा हुआ। हालांकि, अभी तक दोनों अभिनेताओं की ओर से इस विवाद पर कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।
बॉलीवुड से जुड़े सूत्रों का कहना है कि संभवतः यह सीन स्क्रिप्ट का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य किसी भी धर्म का अपमान नहीं, बल्कि कथा की प्रगति के लिए था। लेकिन कई बार फिल्मी कल्पनाएं सामाजिक भावनाओं से टकरा जाती हैं — और यही स्थिति इस फिल्म के साथ भी देखने को मिल रही है।
धार्मिक भावनाएं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का टकराव
यह मामला एक बार फिर उस बहस को हवा देता है, जो भारत में अक्सर देखने को मिलती है — अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम धार्मिक भावनाओं की रक्षा।
भारत का संविधान नागरिकों को अभिव्यक्ति की आज़ादी देता है, लेकिन साथ ही यह भी कहता है कि यह स्वतंत्रता अनियंत्रित नहीं है। अगर किसी की बातों या कृत्यों से समाज में असंतोष, नफरत या धार्मिक तनाव उत्पन्न होता है, तो वह सीमाओं का उल्लंघन मानी जाती है।
फिल्में एक सशक्त माध्यम हैं जो सामाजिक मुद्दों को उजागर करती हैं, लेकिन यह भी सच है कि भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में धार्मिक भावनाएं बेहद संवेदनशील मुद्दा होती हैं। इस संतुलन को बनाए रखना फिल्म निर्माताओं के लिए एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है।
सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया
जैसे ही यह विवाद सामने आया, ट्विटर और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई।
कुछ यूज़र्स ने लिखा:
“यह दृश्य हमारी धार्मिक भावनाओं के खिलाफ है। हम इस फिल्म का बहिष्कार करेंगे।”
वहीं कुछ लोगों ने इस विवाद को अतिरंजित करार दिया और कहा:
“अगर हम फिल्मों में धर्म का चित्रण भी नहीं कर सकते, तो फिर रचनात्मक स्वतंत्रता का क्या मतलब?”
#JusticeForFaith हैशटैग और #BoycottJaatFilm जैसे ट्रेंड्स ट्विटर पर छाए रहे।
फिल्म इंडस्ट्री की प्रतिक्रिया
बॉलीवुड के कुछ निर्माता और निर्देशक इस विवाद को लेकर चिंतित हैं। उनका मानना है कि कलाकारों और क्रिएटिव टीम को हर बार धार्मिक भावना आहत होने के डर से अपनी रचनात्मकता सीमित करनी पड़ रही है।
एक प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक ने नाम न बताने की शर्त पर कहा:
“अगर हर सीन पर आपत्ति जताई जाएगी, तो हम समाज को आईना कैसे दिखाएंगे?”
हालांकि, कुछ फिल्मकार यह भी मानते हैं कि स्क्रिप्ट लिखते समय धार्मिक प्रतीकों या स्थलों के चित्रण में अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए।
क्या फिल्म पर प्रतिबंध लगेगा?
फिलहाल सेंसर बोर्ड की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन धार्मिक संगठनों द्वारा भेजी गई शिकायतों को संज्ञान में लिया जा सकता है। अगर बोर्ड को लगता है कि सीन वाकई आपत्तिजनक है, तो फिल्म को प्रमाणपत्र देने से पहले उसमें कट लगाए जा सकते हैं।
कई बार ऐसे मामलों में रिलीज़ से पहले अदालत से भी स्टे (रोक) की मांग की जाती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह मामला आगे किस दिशा में बढ़ता है।
निष्कर्ष: कला और आस्था के बीच संतुलन ज़रूरी
‘जाट’ फिल्म का विवाद एक बार फिर यह दिखाता है कि भारत जैसे धार्मिक रूप से विविध देश में फिल्मों और अन्य रचनात्मक माध्यमों को अतिरिक्त सावधानी के साथ कंटेंट बनाना पड़ता है।
- एक ओर कलाकारों और फिल्मकारों को रचनात्मक स्वतंत्रता चाहिए
- वहीं दूसरी ओर धार्मिक समुदाय अपनी आस्थाओं की रक्षा की उम्मीद करता है
यह संतुलन बेहद नाज़ुक है — अगर दोनों पक्ष समझदारी और परिपक्वता दिखाएं, तो विवादों से बचा जा सकता है।
आख़िरकार, सिनेमा समाज का आईना है — लेकिन यह आईना अगर धार्मिक भावना को चोट पहुँचाए, तो उसका उद्देश्य भी खो सकता है।