चंडीगढ़ समाचार: राम रहीम चुनाव के दौरान छह बार आ चुका है जेल से बाहर
Chandigarh News: Ram Rahim has come out of jail six times during elections : डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम, जो साध्वियों के यौन शोषण और हत्या के मामलों में 20 साल की सजा काट रहा है, ने हाल ही में एक बार फिर पैरोल की मांग की। राम रहीम का हरियाणा की राजनीति में बड़ा प्रभाव माना जाता है, खासकर 36 विधानसभा सीटों पर, जहां उसका डेरा सच्चा सौदा संगठन मजबूत पकड़ रखता है। यही कारण है कि राम रहीम की पैरोल को हमेशा चुनावों से जोड़कर देखा जाता है।
चुनावों के दौरान राम रहीम की पैरोल
राम रहीम अब तक छह बार चुनावों के दौरान पैरोल या फरलो पर जेल से बाहर आ चुका है। यह घटनाएं बताती हैं कि उसका प्रभाव न केवल धार्मिक बल्कि राजनीतिक भी है, जिसे हरियाणा और आसपास के राज्यों में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। हर बार चुनाव के समय राम रहीम की रिहाई इस बात की ओर इशारा करती है कि वह चुनावों पर किसी न किसी रूप में असर डालता है।
2022 पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले पैरोल (फरवरी 2022)
राम रहीम को पहली बार 2022 में पंजाब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 7 फरवरी को पैरोल दी गई थी। उस समय यह अनुमान लगाया गया था कि राम रहीम की पैरोल का सीधा असर पंजाब की राजनीति पर पड़ सकता है, खासकर मालवा क्षेत्र में जहां डेरा के अनुयायियों की अच्छी-खासी तादाद है। उसकी पैरोल को पंजाब विधानसभा चुनाव में एक महत्वपूर्ण कदम माना गया था, जिससे कई राजनीतिक पार्टियों को लाभ उठाने की उम्मीद थी।
हरियाणा नगर निगम चुनाव से पहले पैरोल (जून 2022)
इसके कुछ महीने बाद, हरियाणा नगर निगम चुनाव से पहले 17 जून 2022 को राम रहीम को 30 दिनों की पैरोल मिली। माना जाता है कि डेरा समर्थक बड़ी संख्या में शहरी क्षेत्रों में रहते हैं और उनके मतों का नगर निगम चुनावों में खासा प्रभाव रहता है। इसलिए राम रहीम की इस पैरोल ने हरियाणा नगर निगम चुनावों में भी उसकी भूमिका को महत्वपूर्ण बना दिया था।
आदमपुर उपचुनाव से पहले पैरोल (अक्टूबर 2022)
आदमपुर उपचुनाव से पहले राम रहीम को 15 अक्टूबर 2022 को 40 दिनों की पैरोल मिली। इस समय, आदमपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहे थे, जहां भी डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों की संख्या प्रभावशाली मानी जाती है। इस समय भी राम रहीम की रिहाई को राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा गया, क्योंकि उसका प्रभाव भाजपा और अन्य प्रमुख राजनीतिक दलों की ओर झुका हुआ माना जाता है।
हरियाणा पंचायत चुनाव से पहले पैरोल (जुलाई 2023)
राम रहीम को 20 जुलाई 2023 को हरियाणा पंचायत चुनाव से पहले फिर से 30 दिनों की पैरोल मिली। हरियाणा के ग्रामीण इलाकों में डेरा सच्चा सौदा का खासा प्रभाव है, और इस पैरोल को भी पंचायत चुनाव से जोड़कर देखा गया। ग्रामीण क्षेत्रों में राम रहीम के अनुयायी उसकी पैरोल का स्वागत करते हुए चुनावों में उसकी उपस्थिति को महत्वपूर्ण मानते हैं।
राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले फरलो (नवंबर 2023)
21 नवंबर 2023 को राम रहीम को 29 दिनों की फरलो दी गई, जब राजस्थान विधानसभा चुनाव होने वाले थे। राजस्थान में भी कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों में डेरा सच्चा सौदा का खासा प्रभाव है। इस बार भी चुनावों से ठीक पहले राम रहीम की फरलो ने राजनीतिक दृष्टिकोण से कई सवाल खड़े किए थे। चुनावी विश्लेषकों का मानना था कि राम रहीम की फरलो से राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों में राजनीतिक समीकरण बदल सकते थे।
हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले फरलो (अगस्त 2024)
हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले 13 अगस्त 2024 को राम रहीम को 21 दिनों की फरलो मिली। हरियाणा में डेरा सच्चा सौदा का प्रभाव सबसे ज्यादा माना जाता है, और विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मिली इस फरलो ने हरियाणा की राजनीति को फिर से चर्चा में ला दिया। राम रहीम की इस फरलो ने राजनीतिक पार्टियों के लिए एक बार फिर उसे ध्यान में रखकर अपनी रणनीति बनाने का मौका दिया।
चुनावों के दौरान पैरोल के लिए नियम
चुनाव के दौरान किसी दोषी को पैरोल देने के लिए सख्त नियम हैं। भारतीय चुनाव आयोग द्वारा जारी चुनाव आचार संहिता के अनुसार, जब भी कोई बड़ा चुनाव हो रहा हो, तो किसी भी दोषी को पैरोल देने से पहले सरकार को चुनाव आयोग से अनुमति लेनी आवश्यक होती है। यह नियम इसलिए बनाया गया है ताकि किसी भी प्रकार से दोषियों की रिहाई का चुनावों पर सीधा प्रभाव न पड़े।
नियमों के अनुसार, अगर सरकार को लगता है कि किसी दोषी को पैरोल देना अत्यावश्यक है, तो उसे राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी से परामर्श करना चाहिए। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी दोषी की रिहाई का चुनावी प्रक्रिया या मतदाता के निर्णय पर कोई गलत प्रभाव न पड़े।
राम रहीम की पैरोल को लेकर सवाल
हर बार चुनाव के दौरान राम रहीम को मिली पैरोल ने कई राजनीतिक सवाल खड़े किए हैं। एक तरफ उसके अनुयायी उसकी पैरोल का स्वागत करते हैं और मानते हैं कि राम रहीम का उनके जीवन पर सकारात्मक प्रभाव है। वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि राम रहीम की रिहाई के पीछे राजनीतिक एजेंडा होता है, जिससे चुनावी समीकरण प्रभावित होते हैं।
राम रहीम के मामले में, उसकी पैरोल को कई बार अदालतों और सरकारों द्वारा समीक्षा के लिए भेजा गया है। हालांकि, हर बार नियमों के तहत उसे पैरोल दी गई है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या कोई भी दोषी जो बड़ी सजा काट रहा है, उसे चुनाव के दौरान पैरोल पर रिहा किया जाना चाहिए या नहीं।
निष्कर्ष
डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम का राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव काफी व्यापक है, खासकर हरियाणा, पंजाब और राजस्थान जैसे राज्यों में। उसकी पैरोल को लेकर चुनावों के समय हमेशा चर्चाएं होती हैं, क्योंकि उसका प्रभाव मतदाताओं पर सीधे तौर पर पड़ सकता है। चुनावों के दौरान पैरोल देने के लिए सरकार और चुनाव आयोग के बीच समन्वय आवश्यक होता है, ताकि इस प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो।
राम रहीम की पैरोल या फरलो से जुड़े मामलों ने यह दिखाया है कि किसी भी दोषी को चुनावों के समय पैरोल देने के पीछे क्या कारण होते हैं और यह कैसे राजनीतिक ध्रुवीकरण को प्रभावित कर सकता है।