Lord Vastushilpa: The first architect of creation

भगवान विश्वकर्मा: सृष्टि के प्रथम शिल्पकार, जिन्होंने किया द्वारका नगरी का निर्माण

Lord Vastushilpa: The first architect of creation, built the city of Dwarka. : सनातन धर्म में हर पर्व और व्रत का विशेष महत्व होता है। इसी तरह, विश्वकर्मा जयंती या विश्वकर्मा पूजा को भी अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। यह पर्व हर साल पूरे भारत में विधिपूर्वक मनाया जाता है, जिसमें भगवान विश्वकर्मा की पूजा-अर्चना की जाती है और विशेष दान दिया जाता है। इस लेख में हम भगवान विश्वकर्मा के बारे में विस्तार से जानेंगे और समझेंगे कि क्यों उन्हें सृष्टि का प्रथम शिल्पकार कहा जाता है और उनका महत्व क्या है।

विश्वकर्मा पूजा कब मनाई जाती है?

हर साल विश्वकर्मा जयंती कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है। सनातन मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विश्वकर्मा का अवतरण हुआ था, इसलिए इसे विश्वकर्मा जयंती के रूप में जाना जाता है। इस वर्ष विश्वकर्मा पूजा 2024 में 17 सितंबर को मनाई जाएगी। यह पर्व विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण होता है जो निर्माण, मशीनरी, औद्योगिक कार्य, और शिल्पकला से जुड़े होते हैं।

कौन हैं भगवान विश्वकर्मा?

भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि के प्रथम शिल्पकार माना जाता है। वह सृष्टि के निर्माणकर्ता भगवान ब्रह्मा की सातवीं संतान हैं। उन्हें देवताओं के सभी प्रमुख धामों के निर्माता के रूप में जाना जाता है। वह स्वर्ग लोक, पुष्पक विमान, कुबेरपुरी और अन्य देवनगरी के रचयिता माने जाते हैं। उनकी निर्माण क्षमता अतुलनीय मानी जाती है, जिसके चलते उन्हें ‘आदि शिल्पी’ और ‘वास्तु देवता’ कहा जाता है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा ने भगवान श्रीकृष्ण के लिए द्वारका नगरी का निर्माण किया था, जो समुद्र के किनारे एक अत्यंत सुंदर और वैभवशाली नगर था। इसके अलावा, उन्होंने रावण के लिए सोने की लंका बनाई थी। इसके साथ ही, भगवान विश्वकर्मा ने भगवान विष्णु के लिए सुदर्शन चक्र, महादेव के लिए त्रिशूल और यमराज का कालदंड जैसे दिव्य अस्त्र-शस्त्र भी बनाए थे।

भगवान विश्वकर्मा की पूजा का महत्व

भगवान विश्वकर्मा की पूजा का विशेष महत्व है, खासकर उन लोगों के लिए जो तकनीकी, औद्योगिक या निर्माण से जुड़े कार्यों में लगे होते हैं। कारखानों, कार्यस्थलों और निर्माण स्थलों में विश्वकर्मा पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस पूजा से व्यापार में वृद्धि होती है और कार्यक्षेत्र में आ रही सभी बाधाएं दूर होती हैं। इसके साथ ही, भगवान विश्वकर्मा की कृपा से सुख-समृद्धि और आर्थिक उन्नति का आशीर्वाद मिलता है।

विशेषकर, उद्योगों, मशीनों और औजारों का संचालन करने वाले लोग इस दिन अपने उपकरणों की साफ-सफाई करते हैं और उनकी विधिवत पूजा करते हैं। यह पूजा इस विश्वास के साथ की जाती है कि भगवान विश्वकर्मा उनके कामकाज में कोई बाधा नहीं आने देंगे और उन्हें सफलता प्राप्त होगी।

विश्वकर्मा पूजा विधि

विश्वकर्मा पूजा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें। इसके बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें और पूजा स्थल पर भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा या चित्र की स्थापना करें। पूजा के दौरान, फूल, फल, मिठाई, और विशेष पूजा सामग्री अर्पित की जाती है। इसके अलावा, औजारों और मशीनों की भी पूजा की जाती है।

भगवान विश्वकर्मा की पूजा में रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप का विशेष महत्व होता है। यह माना जाता है कि इस मंत्र के जप से सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है और जीवन में उन्नति के मार्ग खुलते हैं। विश्वकर्मा पूजा के दौरान निम्न मंत्र का जप एक माला यानी 108 बार करना चाहिए:

मंत्र: “ॐ आधार शक्तपे नमः, ॐ कूमयि नमः, ॐ अनन्तम नमः, पृथिव्यै नमः।”

इस मंत्र के जाप से साधक को कार्यक्षेत्र में आने वाली बाधाओं से मुक्ति मिलती है और उसे सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। इसके साथ ही, आर्थिक समृद्धि और व्यापार में उन्नति होती है।

भगवान विश्वकर्मा से जुड़ी कथाएं और उनके कार्य

भगवान विश्वकर्मा से जुड़ी कई रोचक और महत्वपूर्ण कथाएं धर्म ग्रंथों में मिलती हैं। एक प्रमुख कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण को मथुरा छोड़कर नई नगरी बनाने की आवश्यकता पड़ी, तो भगवान विश्वकर्मा ने समुद्र के किनारे द्वारका नगरी का निर्माण किया। यह नगर इतना अद्वितीय और भव्य था कि इसे देवताओं के लिए भी आदर्श माना गया। इसी प्रकार, उन्होंने रावण के लिए सोने की लंका का निर्माण किया, जो उस समय की सबसे समृद्ध और सुंदर नगरी मानी जाती थी।

इसके अलावा, भगवान विश्वकर्मा ने भगवान विष्णु के लिए सुदर्शन चक्र का निर्माण किया, जो विष्णु जी का प्रमुख अस्त्र है। यह चक्र इतना शक्तिशाली है कि इससे असुरों का नाश किया जा सकता है। उन्होंने महादेव के लिए त्रिशूल, और यमराज के लिए कालदंड भी बनाया, जो यमराज का प्रमुख शस्त्र है।

विश्वकर्मा पूजा से जुड़ी मान्यताएं

विश्वकर्मा पूजा के दिन, लोग अपने औजारों और मशीनों की पूजा करते हैं और भगवान विश्वकर्मा से कामकाज में सफलता और समृद्धि की प्रार्थना करते हैं। इस दिन काम से अवकाश लिया जाता है और भगवान के प्रति श्रद्धा और आस्था प्रकट की जाती है। माना जाता है कि इस दिन पूजा करने से कार्यक्षेत्र में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं और साधक को अपने काम में सफलता मिलती है।

निष्कर्ष

विश्वकर्मा पूजा का महत्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से है, बल्कि यह लोगों के कामकाज और जीवन में भी सफलता और समृद्धि का प्रतीक है। भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि के प्रथम शिल्पकार और देवताओं के लिए दिव्य धामों का निर्माता माना जाता है। उनकी पूजा से कार्यक्षेत्र में उन्नति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस वर्ष 2024 में, 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा मनाई जाएगी, जो सभी शिल्पकारों और कारीगरों के लिए एक विशेष अवसर होगा।

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